Tuesday, February 28, 2017

छ ग - हास्य रचना

छ ग - हास्य रचना 
सावन म करेला फूटे
           गरमी म पसीना
देहाती ल कथें सुन्दरी
            शहर के हसीना |

शहर के हसीना संगी
           मुश्किल कर दिस जीना
देख के जवान टुरा मन
            शुरू कर दिन पीना |

जब ले लगे फागुन महीना
                टुरी मुचमुचात हे
मोबाइल म रात रात भर
           आनी बानी गोठियात हे |

पढाई म मन न ई लागय
      कापी पुस्तक तिरियात हे
दाई ददा के कहे नी मानय
              अब्बड़ सत्ती जात हे |

का होगे जमाना ल संगी
            ए ही समझ न ई आत हे
मुंह म कपड़ा बांध के टुरी
           गाड़ी म कहाँ  जात हे |

No comments:

Post a Comment