Monday, February 27, 2017

गजब मिठाथे रे संगी,..............

गजब मिठाथे रे संगी, मोर छत्तीसगड़ के बासी.
ईही हमर बर तिरिथ गंगा, ईही हमर बर मथरा कासी.
उठथन बिहनिया करथन मुखारी, अउ झडक थन बासी.
दिन भर करथन काम बुता , पेट नई होवय खाली.
दार दरहन के कामे नईये, नई लगाय साग तरकारी.
दही मही संग नुन मिर्चा, गोन्दली येकर सन्ग्वारी.
के दिन ले बनाबो माल पुआ, के दिन ले बनाबो तसमई पुरी.
कतका ला बिसाबो सेव डालीया , के दिन ले खाबो सोहारी.
समोसा, जलेबी, पोहा, खोआ, रसगुल्ला नइ मिठावय हमला.
नई खाए सकन होटल के रोज, तेलहा, फुलहा भजिया.
सहरिया मन के नकल जो करबो, होजाहि जग हासि.
सबले सस्ता सबले बढीया , मोर छत्तीसगढ के बासी .
                        ""जय छत्तीसगढ""

मोबाईल के जमाना हे, 
चलत हे भारी नेट! 
एकर चक्कर मा भात घलो, 
नइ खवावय भर पेट! 
आठोकाल बारो महीना, 
आषाण सावन जेठ! 
उठत बईठत रेंगत दउड़त, 
घंसत घंसत कोलगेट! 
नई छोड़न मोबाइल ला, 
भले डिपटी मा हो जय लेट! 
सब झन लगे हे मोबाईल मा, 
गरीब होवय चाहे सेठ! 
डोकरा बबा घलो हाथ उठाके, 
खोजथे मोबाईल मा नेट! 
कभू चढंहत हे अटरिया ता, 
कभू चढ़हत हे गेट! 
एकर चक्कर मा ले बर पडगे, 
मँहगा वाला हेंडसेट! 
जय हो तोर नेट! 
जय हो तोर नेट! 
जय हो तोर नेट!

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