छ ग - हास्य रचना
सावन म करेला फूटे
गरमी म पसीना
देहाती ल कथें सुन्दरी
शहर के हसीना |
शहर के हसीना संगी
मुश्किल कर दिस जीना
देख के जवान टुरा मन
शुरू कर दिन पीना |
जब ले लगे फागुन महीना
टुरी मुचमुचात हे
मोबाइल म रात रात भर
आनी बानी गोठियात हे |
पढाई म मन न ई लागय
कापी पुस्तक तिरियात हे
दाई ददा के कहे नी मानय
अब्बड़ सत्ती जात हे |
का होगे जमाना ल संगी
ए ही समझ न ई आत हे
मुंह म कपड़ा बांध के टुरी
गाड़ी म कहाँ जात हे |
No comments:
Post a Comment